tag:blogger.com,1999:blog-4712210876268280692024-03-14T03:03:54.764-07:00जमीं आसमाअंजली सहायhttp://www.blogger.com/profile/17444140593307393076noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-471221087626828069.post-70256569378415962662010-05-18T03:42:00.000-07:002010-05-18T03:42:53.417-07:00<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxlkigQ7ckZVakamJWJBpEv5UWhUK4ac5PUoDJPV4lZL9KAjpA0xkOVnC35U3sSSnbCOCQrLsq55VpyA7tm8Hgh53V34CUFnIwtkTq0eGDLq6xShpBSXKQG0PeqGSQidaHO2WFdSegrGU/s1600/tilk_9114%5B1%5D.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxlkigQ7ckZVakamJWJBpEv5UWhUK4ac5PUoDJPV4lZL9KAjpA0xkOVnC35U3sSSnbCOCQrLsq55VpyA7tm8Hgh53V34CUFnIwtkTq0eGDLq6xShpBSXKQG0PeqGSQidaHO2WFdSegrGU/s320/tilk_9114%5B1%5D.jpg" wt="true" /></a></div>पृथ्वी पर जीवन सतत् बना रह सके, इसके लिए मनुष्य को समग्र जीवन के प्रति संवदेनशील रुख अपनाने की आवश्यकता है। यद्यपि आज मनुष्य पर्यावरण की रक्षा के खातिर मैत्रीपूर्ण तकनीक अपनाने की दिशा में बढ़ने लगा है। परन्तु इनसे औद्योगीकरण का दबाव कम होगा और मनुष्य में समग्र जीवन के प्रति संवेदनशीलता जगेगी, इसमें संदेह है। फिर भी इतना आवश्य है कि आज के तकनीकी विकास की सुविधाओं को किसी सीमा तक त्याग कर ही मनुष्य पर्यावरण मैत्रीपूर्ण तकनीक का अनुशीलन कर सकता है। <br />
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पेड़ प्रकृति के वातानुकूलक हैं। एक पेड़ प्रति दिन 400 लिटर पानी हवा में उत्सर्जित करता है, जिससे उतनी ठंडक पैदा होती है जितनी 2500 किलोकेलरी प्रतिघंटा की क्षमता वाले 5 वातानुकूलकों के 20 घंटे निरंतर चलने से पैदा होती है। संवहनी हवाओं के चलते रहने और पत्तों और टहनियों की छाया के कारण भरी दुपहरी में भी पेड़ के नीचे तापमान खुले स्थानों से 10 अंश सेल्सियस कम होता है।अंजली सहायhttp://www.blogger.com/profile/17444140593307393076noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-471221087626828069.post-90993791807176552602010-05-06T05:40:00.000-07:002010-05-06T06:41:54.135-07:00<OBJECT id=BLOG_video-c0fce9f70d45978a class=BLOG_video_class width=320 height=266 contentId="c0fce9f70d45978a"></OBJECT>अंजली सहायhttp://www.blogger.com/profile/17444140593307393076noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-471221087626828069.post-65130013226632788262010-05-04T04:32:00.000-07:002010-05-04T05:10:25.188-07:00बसंत ऋतु में अमराइयों के बीच से कोयल बोल उठती है कुहू-कुहू और एक साथ सहसा सैकड़ों लोगों के हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। संत हृदय में भी प्रेम व्यथा जगाने की शक्ति कोयल के अलावा किसी पक्षी में नहीं है। <br /><br />ऐसा कौन-सा हृदय होगा जिसे मदभरी कोयल की कूक ने तड़पाया नहीं होगा, रुलाया नहीं होगा? साहित्य में सहस्रों पंक्तियाँ इसकी प्रशंसा में लिखी जा चुकी हैं। चकोर, मुर्गा, चकवा तथा कबूतर आदि पक्षी तभी तक अपनी-अपनी बोलियाँ सुनाते हैं जब तक बसंत की प्रभात बेला में कोयल अपना कुहू-कुहू शब्द नहीं सुनाने लगती। बच्चों से लेकर कवियों, संगीतकारों के प्रिय पक्षी कोकिल के दीवाने सामान्य तौर पर यही जानते हैं कि काली कोयल बोल रही है, डाल-डाल पर डोल रही है, कूक कूक का गीत सुनाती...। लेकिन, यदि पक्षी विशेषज्ञों से बात करें तो वे तत्काल आपको बताएंगे कि कोयल गाती नहीं, बल्कि गाता है। दरअसल, मादा कोयल कभी उस तरह से नहीं गाती, नर कोकिल ही उतनी प्यारी आवाज में गाता है, जिसे सुनकर हर कोई आह्वालित होता है। वैसे, कोयल के बारे में जानना अपने आप में रोचक है लेकिन इसके साथ जरूरी है उनकी सुरक्षा। घनी अमराइयां उनके आवास हैं, जिनका पिछले दिनों काफी ह्रास हुआ है।<br /><br /><br />उत्तरी भारत के पर्वतीय क्षेत्र की कोयल समतल क्षेत्रों की अपेक्षा देखने में सुंदर अवश्य है परंतु उसके गले में न तो वह सोज है न वह साज जो समतल क्षेत्रों की कोयल में है। अँगरेजी के प्रसिद्ध कवि वर्ड्सवर्थ ने कोयल की कूक के संबंध में कहा था 'ओ, कुक्कु शेल आई कॉल दी बर्ड, ऑर, बट अ वान्डरिंग वॉयस?<br /><br />कुकू, तुम्हें मैं पक्षी कहूँ या कि एक भ्रमणशील स्वर मात्र? <br />की आवाज बहुत मीठी होती है। जितनी मीठी उसकी आवाज होती है, उससे कहीं अधिक वह चालाक होती है। अपनी इसी चालाकी से वह कौवों को बेवकूफ बनाती है। अपने अंडों को सेने का काम खुद न कर कौवों से करवाती है।<br />कौए व कोयल एक ही मौसम में अंडे देते हैं। कौए तथा कोयल के अंडे लगभग एक समान होता हैं। उनमें फर्क करना बहुत कठिन होता है। पता ही नहीं चलता कि कौनसा अंडा कोयल का है और कौनसा कौए का। इसी का फायदा उठा कर कोयल अपने अंडे कौए के घोंसले में रख देती है। कौए उन अंडों को अपने अंडे समझ कर सेते हैं। होते तो कौए भी बहुत चालाक है, पर कोयल उन्हें धोखा देने में सफल रहती है।<br />कौए के घोंसले में अपने अंडे रखते समय कोयल बहुत सावधानी बरतती है। जब मादा कोयल ने अंडे रखने होते है, तब नर कोयल कौओं को चिढ़ाता है। कौए चिढ़ कर उसका पीछा करते हैं। पीछा करते कौए अपने घोंसले से दूर चले जाते हैं। तब मादा कोयल अपने अंडे कौए के घोंसले में रख देती है। कौओं को शक न हो, इसलिए वह अपने जितने अंडे रखती है, कौओं के उतने ही अंडे घोंसले से उठा कर दूर फेंक आती है। फिर वह एक विशेष आवाज निकाल कर नर कोयल को काम पूरा हो जाने की सूचना देती है। तब नर पीछा करते कौओं को चकमा देकर गायब हो जाता है। फिर कौए कोयल के अंडों को अपने अंडे समझकर सेते रहते हैं।<br />अंडों में से जब बच्चे निकल आते हैं तो कौए उन्हें अपने बच्चे समझकर पालते हैं। बड़े होने पर कोयल के बच्चे, कौओं को चकमा देकर बच निकलने में सफल हो जाते हैं।<br />मादा कोयल अपने अंडों को कौए के घोंसले में रखकर उस धूर्त पक्षी को मूर्ख बनाकर स्वार्थ सिद्ध करने में दक्ष होती है। उसकी इस प्रवृत्ति को महाकवि कालिदास ने विहगेषु पंडित की उपाधि प्रदान की है। यजुर्वेद में इसे अन्याय (दूसरे के घोंसले में अपना अंडा रखने वाला पक्षी) कहा है। काग दंपति बड़े लाड़-प्यार से कोयल के बच्चों को अपनी संतान समझकर पालते-पोसते हैं और जब वे उड़ने योग्य हो जाते हैं तो एक दिन चकमा देकर पलायन कर जाते हैं। यही नहीं, घोंसले में यदि कौए की कोई वास्तविक संतान रही हो तो मौका देखकर उसे जन्म के कुछ ही दिन बाद नीचे गिरा डालते हैं।<br /><br />कोयल के नवजात शिशु में यह धूर्तता तथा कौओं के प्रति विद्वेष की भावना नि:संदेह वंश गुण और संस्कार से ही प्राप्त होते हैं।<br /><br />दूसरों के द्वारा पाले जाने के कारण ही कोयल संस्कृत में परभृता कहलाई है। अभिज्ञान शाकुंतलम में जब शकुन्तला महाराज दुष्यंत की स्मृति जगाने की चेष्टा करती है तो वे कहते हैं- हे गौतमी, तपोवन में लालित-पालित हुए हैं, यह कहकर क्या इनकी अनभिज्ञता स्वीकार करनी पड़ेगी? मनुष्य से भिन्न जीवों की स्त्रियों में भी जब आप से आप पटुता आ जाती है तो फिर बुद्धि से युक्त नारी में यह प्रकट हो, इसमें आश्चर्य ही क्या? मादा कोयल, अंतरिक्ष गमन के पहले अपनी संतान की अन्य पक्षी द्वारा पालन-पोषण की व्यवस्था कर लेती है।<br /><br />खैर कुछ भी हो कोयल की आवाज का जादू इतना गहरा होता है कि बाकी की सारी बातें बेमानी हो जाती हैं।अंजली सहायhttp://www.blogger.com/profile/17444140593307393076noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-471221087626828069.post-8854293972127286222010-03-31T01:52:00.000-07:002010-03-31T02:00:04.350-07:00तितलियां कुदरत की सबसे ख़ूबसूरत रचनाओं में से एक हैं। कोस्टा रीका में तितलियों की 1300 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। इनकी ज़िंदगी पत्ते पर एक बहुत छोटे से अंडे से शुरू होती है। यह सॉलिड खाना नहीं खाती, हालांकि कुछ तितलियां नैक्टर पीती हैं। दुनिया की सबसे तेज़ उड़ने वाली तितली मोनार्च है। यह एक घंटे में 17 मील की दूरी तय कर लेती है। तितली का दिमाग़ बहुत तेज़ होता है। देखने, सूंघने, स्वाद चखने व उड़ने के अलावा जगह को पहचानने की इनकी अद्भुत क्षमता प्रशंसनीय है।ये बहुत लंबी दूरी तय करके भी उस पेड़ पर पहुंच जाती हैं, जहां इनकी लक्कड़दादी ने अंडे दिए थे। दुनिया की सबसे बड़ी तितली जायंट बर्डविंग है, जो सोलमन आईलैंड्स पर पाई जाती है। इस मादा तितली के पंखों का फैलाव १२ इंच से •यादा होता है। जब यह आपके नाक पर बैठती है, तो पूरा चेहरा ढंक लेती है।अंजली सहायhttp://www.blogger.com/profile/17444140593307393076noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-471221087626828069.post-60508793462429460422010-03-31T01:36:00.000-07:002010-03-31T01:47:28.618-07:00<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjC7FqM-eJwtB9GukF7Bh_BkiUOFbtYta0VNVsXBceHXoyZjfKJx_Vth8Gaucl5mb62N4EPJahDrC32NBWjSTEQxidu1cpTIDxAckRIDQEb1vOelJCc5Qt8BM_e9LHwPzPmD3mG6O1Ri28/s1600/ATT31%5B1%5D.gif"><img style="cursor:pointer; cursor:hand;width: 150px; height: 75px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjC7FqM-eJwtB9GukF7Bh_BkiUOFbtYta0VNVsXBceHXoyZjfKJx_Vth8Gaucl5mb62N4EPJahDrC32NBWjSTEQxidu1cpTIDxAckRIDQEb1vOelJCc5Qt8BM_e9LHwPzPmD3mG6O1Ri28/s200/ATT31%5B1%5D.gif" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5454715341050497762" /></a><br /><br />तितली कीट वर्ग का सामान्य रूप से हर जगह पाया जानेवाला प्राणी है। यह बहुत सुन्दर तथा आकर्षक होती है।[१] दिन के समय जब यह एक फूल से दूसरे फूल पर उड़ती है और मधुपान करती है तब इसके रंग-बिरंगे पंख बाहर दिखाई पड़ते हैं। इसके शरीर के मुख्य तीन भाग हैं सिर, वक्ष तथा उदर। इनके दो जोड़ी पंख तथा तीन जोड़ी सन्धियुक्त पैर होते हैं अतः यह एक कीट है। इसके सिर पर एक जोड़ी संयुक्त आँख होती हैं तथा मुँह में घड़ी के स्प्रिंग की तरह प्रोवोसिस नामक खोखली लम्बी सूँड़नुमा जीभ होती है जिससे यह फूलों का रस (नेक्टर) चूसती है। ये एन्टिना की मदद से किसी वस्तु एवं उसकी गंध का पता लगाती है।<br /><br />तितली एकलिंगी प्राणी है अर्थात नर तथा मादा अलग-अलग होते हैं। मादा तितली अपने अण्डे पत्ती की निचली सतह पर देती है। अण्डे से कुछ दिनों बाद एक छोटा-सा कीट निकलता है जिसे कैटरपिलर लार्वा कहा जाता है। यह पौधे की पत्तियों को खाकर बड़ा होता है और फिर इसके चारों ओर कड़ा खोल बन जाता है। अब इसे प्यूपा कहा जाता है। कुछ समय बाद प्यूपा को तोड़कर उसमें से एक सुन्दर छोटी-सी तितली बाहर निकलती है।[२] तितली का दिमाग़ बहुत तेज़ होता है। देखने, सूंघने, स्वाद चखने व उड़ने के अलावा जगह को पहचानने की इनमें अद्भुत क्षमता होती है। वयस्क होने पर आमतौर पर ये उस पौधे या पेड़ के तने पर वापस आती हैं, जहाँ इन्होंने अपना प्रारंभिक समय बिताया होता है। तितली का जीवनकाल बहुत छोटा होता है। ये ठोस भोजन नहीं खातीं, हालाँकि कुछ तितलियाँ फूलों का रस पीती हैं। दुनिया की सबसे तेज़ उड़ने वाली तितली मोनार्च है। यह एक घंटे में १७ मील की दूरी तय कर लेती है। कोस्टा रीका में तितलियों की १३०० से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। दुनिया की सबसे बड़ी तितली जायंट बर्डविंग है, जो सोलमन आईलैंड्स पर पाई जाती है। इस मादा तितली के पंखों का फैलाव १२ इंच से ज्यादा होता है।अंजली सहायhttp://www.blogger.com/profile/17444140593307393076noreply@blogger.com1